आज समाज को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिसमें आधुनिकता के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति का समावेश हो। ऐसी शिक्षा से छात्र / छात्राओं की सोच सम्पूर्ण रूप से विकसित होगी और सही मायने में मानवता का विकास होगा ।
आधुनिक युग में शिक्षा सभी के लिए आवश्यक है चाहे वह स्त्री हो या पुरुश । शायद यह कहना सही रहेगा कि शिक्षा के बिना जीवन ही सम्भव नही है। शिक्षा ही एक मात्र ऐसा शस्त्र है जिससे मनुश्य का सामाजिक, मानसिक, चारित्रिक और नैतिक विकास सम्भव है। आधुनिक शिक्षा को सुदृढ बनाने के लिए आज अत्यन्त आवश्यक है कि आधुनिक शिक्षा में प्राचीन शिक्षा, अति पाश्चात्य शिक्षा दोनो का समावेश है। आज हमारा कर्तव्य है कि हम छात्र / छात्राओं को ऐसी शिक्षा व्यवस्था दें जिससे वे स्वावलम्बी बन सके। इसके लिए कला वर्ग, विज्ञान वर्ग, वाणिज्य वर्ग और रोजगार परक शिक्षा की व्यवस्था गोपीनाथ विद्या ट्रस्ट के द्वारा देने का प्रयास किया गया है जो छात्र / छात्राओं के उज्जवल भविश्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हमने प्रयास किया है कि इस संस्था के प्रत्येक छात्र / छात्राओं को एक उद्देश्यपरक शिक्षा मिले जिससे उनके विकास को नई राह मिले।
विकास के इस युग में शिक्षा एक ऐसी जरूरत है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा मानव के सामाजिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की नींव है और इसे मजबूत करने के लिए हमें प्रयत्नशील रहना होगा। हमें अपनी सोच की दिशा को बदलना होगा, एक ऐसी शुरूआत करनी होगी जिसमें हमारे संस्कार के साथ आधुनिक जीवन के विभिन्न सोपानों का समावेश हो । संस्कारों को नयी शिक्षा पद्धति में स्वीकार करना होगा क्योंकि संस्कारित शिक्षा के द्वारा ही समाज का विकास सम्भव है।
आज हमारा पहला कर्तव्य बनता है कि अपने बालक / बालिकाओं को ऐसी शिक्षा दें जिससे उनकी सोच को नयी दिशा मिल सके। इतना ही नहीं उनके अन्दर स्वावलम्बी बनने की भावना जागृत करनी होगी. एक ऐसी विश्वस्तरीय शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी जिसमें ज्ञान-विज्ञान के साथ ही रोजगार की भी सुविधा हो। हमने प्रयास किया है कि संस्था के प्रत्येक छात्र / छात्रा को एक उद्देश्यपरक शिक्षा मिले जिससे उनके विकास को नयी राह मिले।
सम्पूर्ण समाज के विकास के उद्देश्य हेतु गोपीनाथ विद्या ट्रस्ट के द्वारा महाविद्यालय की स्थापना हुई जिसका एक मात्र सपना छात्र / छात्राओं को उनके कर्तव्यों, उनके आदर्शों, उनके अधिकारों तथा परम्पराओं के साथ ही एक दूरगामी सोच, एक नयी दिशा का बोध करायें वरन् जिससे समाज ही नहीं पूरे राष्ट्र का विकास हो और भारत शिक्षा के आकाश में ध्रुव तारा की तरह हमेशा जगमगाता रहे ।